तब तो ना प्रदूषण था ना धुंध, तो 700 साल पहले मुहम्मद बिन तुगलक ने दिल्ली से राजधानी को क्यों किया था शिफ्ट?

नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली में पिछले कई दिनों से हवा खराब बनी हुई है। स्कूल-दफ्तर बंद किए गए हैं। इस बीच कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने प्रदूषण को देखते हुए राजधानी को कहीं और शिफ्ट करने का सवाल उठाया है। आज से 7 सदी पहले एक बादशाह ने भी राजधानी को द

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नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली में पिछले कई दिनों से हवा खराब बनी हुई है। स्कूल-दफ्तर बंद किए गए हैं। इस बीच कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने प्रदूषण को देखते हुए राजधानी को कहीं और शिफ्ट करने का सवाल उठाया है। आज से 7 सदी पहले एक बादशाह ने भी राजधानी को दिल्ली से कहीं और शिफ्ट किया था। दिल्ली सल्तनत के तुगलक वंश के सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने 1327 में अपनी राजधानी दिल्ली से महाराष्ट्र के दौलताबाद शिफ्ट करने का फरमान जारी किया था। उस वक्त तो दिल्ली में प्रदूषण नहीं था, फिर क्या वजह थी कि तुगलक ने अपनी राजधानी शिफ्ट की? आइए बताते हैं।

तुगलक ने क्यों शिफ्ट की राजधानी?

मुहम्मद बिन तुगलक के राजधानी शिफ्ट करने के पीछे कई कारण बताए जाते हैं। इसमें मंगोल आक्रमणों से सुरक्षा, दक्षिण भारत पर बेहतर नियंत्रण और दिल्ली में अकाल जैसी प्राकृतिक आपदाएं शामिल हैं। लेकिन तुगलक का ये प्लान फेल हो गया और वो अपनी राजधानी शिफ्ट नहीं कर सका। दिल्ली से दौलताबाद करीब 1200 किमी दूर था। सेना के साथ यहां पैदल पहुंचने में करीब 40 दिनों का समय लगता था। राजधानी शिफ्ट करने की योजना विफल होने के बाद 1335 में तुगलक को वापस दिल्ली से ही शासन करना पड़ा।

दिल्ली से दौलताबाद तक बनवाई सड़क

तुगलक ने अपने पिता गियासुद्दीन के शासनकाल में देवगिरि में काफी वक्त बिताया था। जब वो शासक बना तो उसने दौलताबाद राजधानी बनाने की योजना बनाई। वो हजारों लोगों के साथ दौलताबाद के लिए निकल गया। उसने दिल्ली से दौलताबाद तक एक चौड़ी सड़क बनाई गई। सड़क के दोनों ओर छायादार पेड़ लगाए गए। हर दो मील पर सरायें बनाई गईं। लोगों को खाना और पानी मुहैया कराया गया, लेकिन वह पर्याप्त नहीं था। रास्ते में सूफी खानकाहें बनाई गईं। हर खानकाह में एक सूफी संत को तैनात किया गया।

लोगों को पलायन के लिए किया गया मजबूर

इसके अलावा दिल्ली और दौलताबाद के बीच डाक सेवा शुरू की गई। गुलामों, रईसों, नौकरों, उलेमा और सूफियों को 1200 किलोमीटर दूर नई राजधानी जाने का आदेश दिया गया। लोगों को पैदल ही जाना था। इसका जिक्र इतिहासकार सतीश चंद्र ने अपनी किताब 'हिस्ट्री ऑफ मिडीवल इंडिया' में किया है। वो कहते हैं कि तुगलक के फरमान से ऐसा लगता है कि लोगों को पलायन के लिए मजबूर किया गया। उन्हें उदार अनुदान दिए गए और दौलताबाद में उनके ठहरने की व्यवस्था की गई। दिल्ली की जनता को सामान समेटने और दौलताबाद जाने के लिए सिर्फ तीन दिन का समय दिया गया। जो लोग विरोध करते थे, उन्हें सजा दी जाती थी।

लंगड़े और अंधे को भी नहीं बख्शा

इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार, मोरक्को के यात्री इब्न बतूता ने अपनी यात्रा वृत्तांत में लिखा है कि ज्यादातर लोगों ने फरमान का पालन किया, लेकिन कुछ लोग अपने घरों में छिप गए। समय सीमा समाप्त होने के बाद सुल्तान ने तलाशी लेने का आदेश दिया। उनके गुलामों को सड़कों पर दो लोग मिले। एक लंगड़ा था, दूसरा अंधा। दोनों को सुल्तान के सामने लाया गया। सुल्तान ने आदेश दिया कि लंगड़े को मैनगोनैल से उड़ा दिया जाए और अंधे को घसीटते हुए दौलताबाद ले जाया जाए। 40 दिन की यात्रा के दौरान अंधा आदमी रास्ते में ही मर गया। दौलताबाद पहुंचते-पहुंचते उसके शरीर का सिर्फ एक पैर ही बचा था!

कई लोग दिल्ली में भी रह गए

1329 में मुहम्मद बिन तुगलक की मां और रईसों को भी दौलताबाद जाने के लिए मजबूर होना पड़ा। हालांकि, पूरी दिल्ली की आबादी को नहीं ले जाया गया। सतीश चंद्र ने लिखा है कि दिल्ली में ढाले गए सिक्कों से यह बात साबित होती है कि कुछ लोग दिल्ली में ही रह रहे थे।

विनाशकारी प्रयोग साबित हुए ये प्लान

तुगलक का राजधानी शिफ्ट करने का प्लान एक विनाशकारी प्रयोग साबित हुआ। ये सफर बेहद खतरनाक था। गर्मी, भूख और संसाधनों की कमी के कारण कई लोगों की मौत हो गई। दौलताबाद किले तक पहुंचने के लिए खड़ी चढ़ाई ने लोगों की मुश्किलें और बढ़ा दीं। दिल्ली छोड़कर आने वाले कई लोगों को अपने घर की याद सताने लगी। वे पीढ़ियों से दिल्ली में रह रहे थे। इससे व्यापक असंतोष फैल गया। धीरे-धीरे राजकोष खाली हो गया।

तुगलक को भूल आ गई समझ

तुगलक को जल्द ही समझ आ गया कि वो दौलताबाद से उत्तर भारत को नियंत्रित नहीं कर सकता। अपने फैसले की मूर्खता को समझते हुए, मुहम्मद बिन तुगलक ने 1335 में राजधानी वापस दिल्ली शिफ्ट कर दी। लोगों को वापस दिल्ली जाने के लिए कहा गया। वापसी यात्रा भी उतनी ही दर्दनाक थी। लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा। तुगलक के इस यूटर्न को उसकी कमजोरी समझा गया।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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